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कहां फरिश्तों की दरकार है.. । डॉ नीरु जैन

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कहां फरिश्तों की दरकार है लोग कहते है हज़ार ऐब है उसमें फिर भी स्वीकार है कि ये प्यार है दिलों  का  इसमें कहां फरिश्तों की  दरकार  है कि मुझे तो उसमें ही रब दिखता है खूबसूरत याद बन के संग ही रहता है वो खुद भी कहे,कि बहुत बुरे है हम फिर भी मुझे  कहा ऐतबार है गर खताएं भी हो तो हंस के माफ कर दूं नखरे भी उसके सर माथे पे रख लूं उसके आगे  चांद की भी रंगत बेकार हैं कि ये प्यार है दिलों  का  इसमें कहां फरिश्तों की  दरकार  है