My poetry : शब्दों का कोई महजब नहीं होता....

 Poem #4

शब्दों का कोई महजब नहीं होता
हर शब्द में इक दिल सा होता....
छू के इन्हें देखो जरा
हर लफ्ज़ में इक जादू सा होता....
जिन्हें जीने का सलीका ना आता हो
बस उसमे ही हिन्दू या मुस्लिम होता.....
जिसे प्रेम का अक्षर ज्ञान नहीं
बस वही तेरा मेरा मजहब रोता ....
खुदा बनने की होड़ में हैं सभी
काश पहले वो सहज़ सा इंसान होता......
दर्द बांटना जो आया होता
तो हर दिल में गीता ओ कुरान होता.......
शब्दों का कोई महजब नहीं होता
हर शब्द में इक दिल सा होता......
Dr. Neeru Jain
#neerujain

Comments

Popular posts from this blog

JEWELLERY TREND FOR WORKING WOMEN

Technological Modernization in Jewelry Industry